टाइटैनिक(Titanic) जहाज दुनिया में कभी न डूबने वाला सबसे बड़ा जहाज था.फिर यह जहाज डूब कैसे गया. ठीक 110 साल पहले टाइटैनिक एक अंधेरी रात के वक्त एक आइसबर्ग (हिमखंड) से टकरा गया था. उस वक्त अधिकांश यात्री नींद के आगोश में थे.
टाइटैनिक दुनिया का सबसे बड़ा वाष्प आधारित यात्री जहाज था. वह साउथम्पटन (इंग्लैंड) से अपनी प्रथम यात्रा पर, 10 अप्रैल 1912 को रवाना हुआ. चार दिन की यात्रा के बाद, 14 अप्रैल 1912 को वह एक हिमशिला से टकरा कर डूब गया जिसमें करीब 1,517 लोगों की मृत्यु हुई जो इतिहास की सबसे बड़ी शांतिकाल समुद्री आपदाओं में से एक है.
जहाज में सवार यात्री
हादसे के वक्त Titanic 41 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से इंग्लैंड के साउथम्पैटन से अमेरिका के न्यूयार्क की ओर बढ़ रहा था और महज तीन घंटे के अंदर 14 और 15 अप्रैल, 1912 की दरमियानी रात में टाइटैनिक अटलांटिक महासागर में समा गया. जिस जहाज के कभी नहीं डूबने की चर्चा थी, वह डूब गया. हादसे में 1500 के करीब लोग भी मारे गए.
सबसे बड़ा हादसा
इसे 110 साल बीतने के बाद भी सबसे बड़ा समुद्री हादसा माना जाता है. हादसे की जगह से अवशेषों को सितंबर, 1985 में हटाया गया था. हादसे के बाद, कनाडा से 650 किलोमीटर की दूरी पर 3,843 मीटर की गहराई में जहाज दो भागों में टूट गया था और दोनों हिस्से एक दूसरे से 800 मीटर दूर हो गए थे. इस हादसे के 110 साल बाद भी आज भी इस हादसे को लेकर रहस्य बना हुआ है
क्यों डूबा टाइटैनिक जहाज
टाइटैनिक के डूबने का मुख्य कारण अत्यधिक गति से चलना था. टाइटैनिक के मालिक J. Bruce Ismay जे .ब्रूस इस्मे ने जहाज के कप्तान Edward Smith को जहाज को अत्यधिक गति से चलाने के लिए कहा था. 12 अप्रैल 1912 को टाइटैनिक को 6 बर्फ की चट्टानों की चेतावनिया मिली थी. कप्तान को लगा की बर्फ की चट्टान आने पर जहाज मुड जाएगा. परन्तु बद्किस्मती से जहाज बहुत बड़ा था और राडार छोटा था. बर्फ की चट्टान आने पर वह अधिक गति के कारण समय पर नहीं मुड पाया और चट्टान से जा टकराया. जिससे जहाज के आगे के हिस्से में छेद हो गए और लगभग 11:40 p.m. पर वो डूबने लगा. तक़रीबन 2:20 a.m. पर वो पूरा समुन्द्र में समां गया.
जिस सागर में वह डूबा था उसके जल का तापमान -2℃ था जिसमें किसी साधारण इंसान को 20 मिनट से ज़्यादा जिन्दा रहना नामुमकिन था. जिस चट्एटान से टकराया वह एक अनुमान के मुताबिक करीब 10,000 साल पहले ग्रीनलैंड से अलग हुई थी.
जहाज का मलबा
यह जहाज जहां पर डूबा था, वहां घुप्प अंधेरा है और समुद्र की गहराई में तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. अब इतनी गहराई में किसी इंसान का जाना और फिर सुरक्षित वापस लौटकर आना बहुत ही मुश्किल काम है. ऐसे में जहाज का मलबा लाना तो बहुत दूर की बात है और वैसे भी जहाज इतना बड़ा और भारी था कि लगभग चार किलोमीटर की गहराई में जाकर मलबा निकालकर बाहर लाना लगभग नामुमकिन है.
बताया जाता है कि समुद्र के अंदर अब Titanic का मलबा ज्यादा समय तक टिक भी नहीं पाएगा, क्योंकि वो बड़ी तेजी से गल रहा है। जानकारों की मानें तो आने वाले 20-30 सालों में टाइटैनिक का मलबा पूरी तरह गल जाएगा और समुद्र के पानी में विलीन हो जाएगा। दरअसल, समुद्र में पाए जाने वाले बैक्टीरिया उसके लोहे से बने ढांचे को तेजी से कुतर रहे हैं, जिसकी वजह से उसमें जंग लग जा रहा है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जंग पैदा करने वाले ये बैक्टीरिया हर रोज करीब 180 किलो मलबा खा जाते हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक मानते हैं कि अब Titanic की उम्र ज्यादा नहीं बची है।
टाइटैनिक का निर्माण
टाइटैनिक का निर्माण 31 मार्च 1909 को American J.P. Morgan और International Mercantile Marine Co. की लागत से शुरू हुआ. इसके पतवारों को 31 मई 1911 को जल में उतारा गया और तैयारी होने लगी कि अगले साल इसकी यात्रा शुरू कर दी जाए.
Titanic की कुल लम्बाई 882 फीट और 9 इंच (269.1 मीटर), इसके ढालों की चौड़ाई 92 फीट (28.0 मीटर), भार 46,328 टन (GRT) और पानी के स्तर से डेक तक की ऊंचाई 59 फीट (18 मीटर) थी. जहाज में दो पारस्परिक जुड़े हुए चार सिलेंडर, triple-expansion steam engines और एक कम दबाव Parsons turbine (जो प्रोपेलर को घुमाते थे) था.
इसमें 29 boiler थे जो 159 कोयला संचालित भट्टियो से जुड़े हुए थे और जहाज को 23 समुद्री मील (43 km/h, 26 mph) की तेज गति प्रदान करते थे. 62 फीट (19 मी) की उचाई की चार में से केवल तीन funnel काम करती थीं और चौथी funnel, वेंटिलेशन के लिए थी. इसके साथ ही यह जहाज को अधिक सजावटी और आकर्षक भी बनाती थीं. जहाज की कुल क्षमता यात्रियों और चालक दल के साथ 3549 थी.
टाइटैनिक अकेला नहीं था
टाइटैनिक अकेला नहीं था. इस जहाज को चलाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार लाइन कंपनी ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बेलफास्ट शहर के हारलैंड और वोल्फ शिपयार्ड को तीन जहाजों को तैयार करने का ऑर्डर दिया था.
उम्मीद की जा रही थी कि विश्वस्तरीय डिज़ाइन टीम द्वारा निर्मित ये तीनों जहाज दुनिया के सबसे लंबे, सुरक्षित और सुविधाओं से युक्त होंगे. इंजीनियर स्टंप ने बताया, “इन परियोजनाओं को उस दौर में ख़ूब प्रचारित भी किया गया था.”
1908 से 1915 के बीच निर्मित इन जहाजों को ओलंपिक क्लास के जहाज कहा गया था. पहले दो जहाज को तैयार करने का काम शुरू हुआ था, 1908 में ओलंपिक और 1909 में टाइटैनिक का. तीसरे जहाज जाइगेन्टिक का उत्पादन 1911 में शुरू किया गया.
हालांकि, तीनों जहाज किसी ने किसी हादसे में शामिल रहे. ओलंपिक जहाज की सेवा जून, 1911 में शुरू हुई थी, उसी साल यह एक युद्ध पोत से टकरा गया था. मरम्मत के बाद इसकी सेवा फिर शुरू हुई.
टाइटैनिक ने अपनी पहली यात्रा 10 अप्रैल, 1912 को शुरू की थी. साउथम्पैटन बंदरगाह के बाहर यह एक अन्य जहाज से टकराते टकराते बचा था. 14 अप्रैल को यह ऐतिहासिक हादसे का शिकार हो गया.
जाइगेन्टिक का भी बहुत इस्तेमाल नहीं हुआ. इसका नाम बदलकर ब्रिटानिक कर दिया गया था. ब्रिटिश नौ सेना ने इसे पहले विश्व युद्ध के दौरान अस्पताल में तब्दील कर दिया था. यह जहाज नवंबर, 1916 में डूब गया था.
सफर करने की फीस 2 लाख से भी ज्यादा
Titanic में First Class में सफर करने के लिए आज से करीब 100 साल पहले 4,350 डॉलर यानी की 2,70,000 रुपए चुकाने पड़ते थे. वही सेकंड क्लास के लिए 1,750 डॉलर यानी कि करीब एक लाख रुपए देने पड़ते थे और Third Class के लिए करीब 30 डॉलर यानी की 2000 रुपए की रकम चुकानी पड़ती थी. आज के समय में डॉलर की कीमत को देखा जाए तो एक यात्री को इसमें सफर करने के लिए 50 लाख रुपए खर्च करने पड़ते थे.
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