माना जाता है कि तस्मानियन टाइगर(Tasmanian Tiger), जिसका वैज्ञानिक नाम थाइलासिन है, 2,000 साल पहले ऑस्ट्रेलिया की मुख्य भूमि पर पाया जाता था. इस प्रजाति का एकमात्र बचा जीव 1936 में ऑस्ट्रेलिया के द्वीपीय राज्य तस्मानिया की राजधानी होबार्ट के एक चिड़ियाघर में मर गया था. 1980 में इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया गया था
इस धरती पर आज हम जितने प्रकार के जीव-जंतुओं के बारे में जानते हैं, इसके अलावा भी कई ऐसे जीव थे जो अब पूरी तरह से विलुप्त हो चुके हैं। इसी क्रम में बेंजामिन (Benjamin) नाम के आखिरी तस्मानियन बाघ (Tasmanian tiger) या थायलासीन (Thylacine) की 7 सितंबर, 1936 को मौत हो गई जिसके बाद तस्मानियन टाइगर को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। ये बेहद खतरनाक जानवरों में से एक था। लेकिन अब विलुप्त हो चुके इस धारदार मांसाहारी जीव को शायद एक बार फिर से जीवन मिल सकता है।
अब मेलबर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ऐंड्र्यू पास्क और उनकी टीम इस टाइगर को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है. पास्क की थाइलासfन इंटिग्रेटेड जेनेटिक रीस्टोरेशन रीसर्च (TIGRR) लैब ने अमेरिका स्थित कोलोसल बायोसाइंसेज नाम की एक कंपनी के साथ काम करने पर समझौता किया है. पास्क कहते हैं कि यह समझौता इंसान को “ऑस्ट्रेलिया के खतरे में पड़े जीवों के संरक्षण और विलुप्त हो चुके जीवों को वापस लाने” की दिशा में बड़ा कदम उठाने में मददगार होगा
कोलोसल जीन-एडिटिंग तकनीकों पर काम करने वाली संस्था है. उसकी तकनीकों का इस्तेमाल कर ऑस्ट्रेलियाई लैब में पहले जारी तस्मानियन टाइगर को दोबारा जिंदा करने का काम और तेज किया जा सकेगा.
एक बयान में पास्क ने कहा, “इस सहयोग के जरिए, मेरा मानना है कि दस साल में हम थाइलासिन का जीवित शावक देख सकते हैं, जिसे हमने एक सदी पहले शिकार करके खत्म कर दिया था. तकनीक हमारे पास है.”
कैसे जन्मेगा शावक?
प्रोफेसर एंड्रयू पास्क की टीम ने 2018 में एक थायलासीन का पहला जीनोम सीक्वेंस प्रकाशित किया था, जिसके लिए उन्होंने 100 सालों से संग्रहित नमूने से डीएनए का इस्तेमाल किया था। इससे पहले, जीनोम की ड्राफ्ट असेंबली अधूरी थी। लेकिन अब थायलासीन के लिए बेहतर डीएनए असेंबली और संबंधित जीवित प्रजातियों से उच्च गुणवत्ता वाले जीनोम को नए क्रोमोसोम्स-स्केल पर मापा जा सकेगा।
वहीं जब सारी जानकारी मिल जाएगी, तो ‘जुरासिक-पार्क-एस्क’ (Jurassic-park-esque) प्रयोग को शुरू किया जाएगा। एक डननार्ट अंडे के साथ थायलासीन की कोशिका को फ्यूज करके, भ्रूण बनाने के लिए जीवित स्टेम सेल का प्रयोग करने के उद्देश्य से असिस्टिड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (Assisted reproductive technologies-ART) विकसित की जाएगी।
इसके बाद इस अंडे को मां (होस्ट) के गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाएगा। फर्क केवल डननार्ट और थायलासीन के बीच के आकार में होगा। वहीं जन्म के समय उसे अलग कर दिया जाएगा और उसकी देखरेख एक मार्सुपियल ही करेगा।
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