महाशिवरात्रि भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। Mahashivratri पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्रिलिंग(जो महादेव का विशालकाय स्वरुप है ) के उदय से हुआ।
इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में 12 शिवरात्रि पड़ती है लेकिन महा शिरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत के साथ अन्य देशो में भी Mahashivratri का त्यौहार बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रहते है और शिव को फल – फुल अर्पित करते है उसके साथ शिवलिंग पर दूध या जल भी अर्पित करते है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर – रात्रि और बोलचाल में हेराथ या हेरथ भी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि कब है 2024 :
साल 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च शुक्रवार को है. निशिता काल में पूजा का समय रात के 12:07 से 12:56 तक रहेगा. 9 मार्च 2024 को महाशिवरात्रि व्रत के पारण समय सुबह 6:37 से दोपहर 3:29 तक रहेगा।
महाशिवरात्रि कथा
महाशिवरात्रि से सम्बंधित बहुत सी कथाये प्रचलित है।
1. समुन्द्र मंथन
समुन्द्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित किया गया था , लेकिन इसके साथ एक विष भी पैदा हो गया इस विष का नाम हलाहल था।
हलाहल विष के पास ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इस विष को केवल भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था की भगवान शिव दर्द से पीड़ित हो गए और उनका गला बहुत ही नीला हो गया था। इस कारण शिव शंकर “नीलकंठ” के नाम से प्रसिद्ध है। उपचार के लिए , चिकित्सको ने भगवान शिव को रात भर जागने की सलाह दी। शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी । शिव को जागते रहने के लिए और साथ में आनंद के लिए देवताओ ने अलग -अलग नित्य और संगीत बजाये। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। महाशिवरात्रि इसी घटना का उत्सव है।
2. शिव और पार्वती का विवाह
शिवभक्त इस दिन भगवान शिव के शादी का उत्सव मनाते है। मान्यता है की शिवरात्रि के दिन शिवजी कि शादी शक्ति के साथ हुई थी। इस दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था।
शिव के बारह ज्योतिर्लिंग
बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के धार्मिक स्थल एवं केंद्र है। ये बारह ज्योतिर्लिंग स्वय उत्पन्न हुए थे जो “स्वयम्भू” के रूप में जाने जाते हैं। बारह स्थानों पर बारह ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
- सोमनाथ – यह शिवलिंग गुजरात के काठीयावाड़ा में स्थापित है।
- श्री शैल मल्लिकार्जुन – मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।
- महाकालेश्वर – उज्जैन के अवन्ती नगर में यह शिवलिंग स्थित है , जहा शिव जी ने दैत्यों का नाश किया था।
- ओंकारेश्वर – यह मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है।ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में कि गई है।
- नागेश्वर – गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थित है।
- वैद्यनाथ – यह शिवलिंग विहार में स्थापित है।
- भीमाशंकर – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग भीमा नदी के किनारे स्थित है।
- त्र्यम्बकेश्वर – महाराष्ट्र के नासिक जिले से 25 किलोमीटर की दुरी पर यह शिवलिंग स्थित है।
- केदारनाथ – केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखण्ड के हिमालय की चोटी पर विराजमान है।
- विश्वनाथ – यह ज्योतिर्लिंग बनारस के कशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित है।
- रामेश्वर – यह तमिलनाडु के रामेश्वरम में विराजमान है।
- घुमेश्वर – महाराष्ट्र के ओरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गावं में यह ज्योतिर्लिंग स्थित है।
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व
एक शक्ति है, एक रहस्यमय ऊर्जा जिससे सब जगत चलायमान है। वैज्ञानिक अभी तक इसे कोई नाम नहीं दे पाये हैं। हालांकि, प्राचीन काल के ऋषियों और संतों ने इस अज्ञात शक्ति को शिव कहा है।
शिव वह ऊर्जा है जो हर जीव के भीतर मौजूद है। इस ऊर्जा की वजह से ही हम अपनी दैनिक गतिविधियाँ जैसे सांस लेना, खाना, उठाना, चलना और बैठना कर पाते हैं। यह ऊर्जा न केवल जीवित प्राणियों को चलाती है, बल्कि यह निर्जीव चीज़ों में भी कार्य करती है। इस प्रकार शिव अस्तित्व को संचालित करते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन क्या करें?
महाशिवरात्रि वह दिन है जब हम भगवान शिव की अराधना करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन अधिकतर लोग ध्यान, पूजा और शिव भजन गाकर उत्सव मानते हैं। इनमें से कुछ में आप भी भाग ले सकते हैं:
(1) उपवास
उपवास से शरीर के हानिकारक पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और शरीर की शुद्धि होती है| जिससे मन को शान्ति मिलती है। जब मन शांत होता है तब वह आसानी से ध्यान में चला जाता है। इसीलिए, महाशिवरात्रि पर उपवास करने से मन तथा चित्त को विश्राम मिलता है। ऐसी सलाह दी जाती है कि इस दिन फल अथवा ऐसा भोजन ग्रहण करें जो सुपाच्य हो। महाशिवरात्रि उपवास के बारें में और अधिक जानें |
(2) ध्यान
महाशिवरात्रि की रात को नक्षत्रों की स्थिति, ध्यान के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। इसलिए, लोगों को शिवरात्रि पर जागते रहने और ध्यान करने की सलाह दी जाती है। प्राचीन काल में, लोग कहते थे, ‘यदि आप हर दिन ध्यान नहीं कर सकते हैं, तो साल में कम से कम एक दिन ध्यान अवश्य करें। महाशिवरात्रि को रात्रि जागरण करें और ध्यान करें।’
(3) मंत्रोच्चारण
- महाशिवरात्रि के दिन “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का उच्चारण सबसे लाभदायक है। यह मंत्र तुरंत ही आपकी उर्जा को ऊपर उठाता है।
- मंत्र में “ॐ” की ध्वनि ब्रह्मांड की ध्वनि है। जिसका तात्पर्य है प्रेम और शान्ति। “नम: शिवाय” में यह पाँच अक्षर “न”, “म”, “शि”, “वा”, “य” पाँच तत्त्वों की ओर इशारा करते हैं। वह पाँच तत्त्व हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
- “ॐ नम: शिवाय” का जप करने से ब्रह्मांड में मौजूद इन पाँच तत्त्वों में सामंजस्य पैदा होता है। जब इन पाँच तत्त्वों में प्रेम, शान्ति का सामंजस्य होता है, तब परमानंद प्रस्फुटित होता है।
(4) महाशिवरात्रि पूजा/ रूद्र पूजा में सम्मिलित होने से क्या लाभ होता है
रूद्र पूजा या महाशिवरात्रि पूजा, भगवान शिव के सम्मान में की जाने वाली पूजा है। महाशिवरात्रि के दिन, रूद्र पूजा का बड़ा महत्व है, इस पूजा में विशेष अनुष्ठानों के साथ, वैदिक मंत्रों का उच्चारण भी शामिल है। रूद्र पूजा से वातावरण में सकारात्मकता और पवित्रता का उदय होता है। यह नकारात्मक विचारों और भावनाओं को परिवर्तित कर देता है। पूजा में बैठने से और मंत्रों को सुनने से मन सहज ही गहन ध्यान में उतर जाता है।
(5) शिवलिंग की उपासना
शिवलिंग निराकार शिव का ही प्रतीक है। शिवलिंग पूजा में “बेल पत्र” अर्पण किया जाता है। शिवलिंग को “बेल पत्र” अर्पण करना अर्थात तीन गुण शिव तत्व को समर्पित कर देना | तमस (वह गुण जिससे जड़ता उत्त्पन होती है), रजस (वह गुण जो गतिविधियों का कारक है), सत्व (वह गुण जो सकारात्मकता, रचनात्मकता और जीवन शान्ति लाता है)। ये तीनों गुण आपके मन और कार्यों को प्रभावित करते हैं। इन तीनों गुणों को दिव्यता को समर्पण करने से शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
भारत में शिवरात्रि
मध्य भारत
मध्य भारत में महाकालेश्वर (उज्जैन) मंदिर सबसे सम्माननीय भगवान शिव का मंदिर है। जहा हर वर्ष शिव भक्त एक बड़ी संख्या में महाशिरात्रि के दिन पूजा – अर्चना के लिए आते है। जेओनरा सिवनी के मठ मंदिर व जबलपुर के तिलवाड़ा घाट नामक स्थानों पर यह त्योहार बहुत धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा दमोह जिले के बान्दकपुर धाम में भी इस दिन लाखो लोगो का जमावड़ा होता है।
कश्मीर में शिवरात्रि
कश्मीर में यह त्योहार शिव और पार्वती के विवाह के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव 6 से 7 दिनों तक चलता है। कश्मीरी ब्राह्मणों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है।
दक्षिण भारत
महाशिवरात्रि आंध्रप्रदेश , कर्नाटका , केरल , तमिलनाडु और तेलंगाना आदि के सभी मंदिरों में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
बांग्लादेश में शिवरात्रि
बांग्लादेश में भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन वह शिव का व्रत रखने है कई शिवभक्त इस दिन चन्द्रनाथ धाम (चिटगावं) पूजा करने जाते है।
नेपाल में शिवरात्रि
नेपाल में महा शिवरात्रि को पशुपति नाथ मंदिर में ब्यापक रूप से मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर काठमांडू के पशुपति मंदिर में भक्तजनों की भीड़ लगती है। इस दिन भारत समेत विश्व के विभिन्न स्थानों से जोगी एवं भक्तजन इस मंदिर में आते है।
शिव को आदि (प्रथम ) गुरु माना जाता है। शिव जिनको योग परम्परा की शुरुआत मानी जाती है। परम्परा के अनुसार, इस रात ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिनको भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है।
भगवान शिव के मंत्र
शिवजी का मूल मंत्र – ऊँ नम: शिवाय। है।
महाम्रितुन्जय मंत्र –
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
भगवान शिव के 108 नाम और मंत्र
रुद्र: ऊं रुद्राय नमः।
शर्व: ऊं शर्वाय नमः।
भव: ऊं भवाय नमः।
उग्र: ऊं उग्राय नमः।
भीम: ऊं भीमाय नमः।
पशुपति: ऊं पशुपतये नमः।
ईशान: ऊं ईशानाय नमः।
महादेव: ऊं महादेवाय नमः।
शिव: ऊं शिवाय नमः।
महेश्वर: ऊं महेश्वराय नमः।
शम्भू: ऊं शंभवे नमः।
पिनाकि: ऊं पिनाकिने नमः।
शशिशेखर: ऊं शशिशेखराय नमः।
वामदेव: ऊं वामदेवाय नमः।
विरूपाक्ष: ऊं विरूपाक्षाय नमः।
कपर्दी: ऊं कपर्दिने नमः।
नीललोहित: ऊं नीललोहिताय नमः।
शंकर: ऊं शंकराय नमः।
शूलपाणि: ऊं शूलपाणये नमः।
खटवांगी: ऊं खट्वांगिने नमः।
विष्णुवल्लभ: ऊं विष्णुवल्लभाय नमः।
शिपिविष्ट: ऊं शिपिविष्टाय नमः।
अंबिकानाथ: ऊं अंबिकानाथाय नमः।
श्रीकण्ठ: ऊं श्रीकण्ठाय नमः।
भक्तवत्सल: ऊं भक्तवत्सलाय नमः।
त्रिलोकेश: ऊं त्रिलोकेशाय नमः।
शितिकण्ठ: ऊं शितिकण्ठाय नमः।
शिवाप्रिय: ऊं शिवा प्रियाय नमः।
कपाली: ऊं कपालिने नमः।
कामारी: ऊं कामारये नमः।
अंधकारसुरसूदन: ऊं अन्धकासुरसूदनाय नमः।
गंगाधर: ऊं गंगाधराय नमः।
ललाटाक्ष: ऊं ललाटाक्षाय नमः।
कालकाल: ऊं कालकालाय नमः।
कृपानिधि: ऊं कृपानिधये नमः।
परशुहस्त: ऊं परशुहस्ताय नमः।
मृगपाणि: ऊं मृगपाणये नमः।
जटाधर: ऊं जटाधराय नमः।
कैलाशी: ऊं कैलाशवासिने नमः।
कवची: ऊं कवचिने नमः।
कठोर: ऊं कठोराय नमः।
त्रिपुरान्तक: ऊं त्रिपुरान्तकाय नमः।
वृषांक: ऊं वृषांकाय नमः।
वृषभारूढ़: ऊं वृषभारूढाय नमः।
भस्मोद्धूलितविग्रह: ऊं भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः।
सामप्रिय: ऊं सामप्रियाय नमः।
स्वरमयी: ऊं स्वरमयाय नमः।
त्रयीमूर्ति: ऊं त्रयीमूर्तये नमः।
अनीश्वर: ऊं अनीश्वराय नमः।
सर्वज्ञ: ऊं सर्वज्ञाय नमः।
परमात्मा: ऊं परमात्मने नमः।
सोमसूर्याग्निलोचन: ऊं सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः।
हवि: ऊं हविषे नमः।
यज्ञमय: ऊं यज्ञमयाय नमः।
सोम: ऊं सोमाय नमः।
पंचवक्त्र: ऊं पंचवक्त्राय नमः।
सदाशिव: ऊं सदाशिवाय नमः।
विश्वेश्वर: ऊं विश्वेश्वराय नमः।
वीरभद्र: ऊं वीरभद्राय नमः।
गणनाथ: ऊं गणनाथाय नमः।
प्रजापति: ऊं प्रजापतये नमः।
हिरण्यरेता: ऊं हिरण्यरेतसे नमः।
दुर्धर्ष: ऊं दुर्धर्षाय नमः।
गिरीश: ऊं गिरीशाय नमः।
अनघ: ऊं अनघाय नमः।
भुजंगभूषण: ऊं भुजंगभूषणाय नमः।
भर्ग: ऊं भर्गाय नमः।
गिरिधन्वा: ऊं गिरिधन्वने नमः।
गिरिप्रिय: ऊं गिरिप्रियाय नमः।
कृत्तिवासा: ऊं कृत्तिवाससे नमः।
पुराराति: ऊं पुरारातये नमः।
भगवान्: ऊं भगवते नमः।
प्रमथाधिप: ऊं प्रमथाधिपाय नमः।
मृत्युंजय: ऊं मृत्युंजयाय नमः।
सूक्ष्मतनु: ऊं सूक्ष्मतनवे नमः।
जगद्व्यापी: ऊं जगद्व्यापिने नमः।
जगद्गुरू: ऊं जगद्गुरुवे नमः।
व्योमकेश: ऊं व्योमकेशाय नमः।
महासेनजनक: ऊं महासेनजनकाय नमः।
चारुविक्रम: ऊं चारुविक्रमाय नमः।
भूतपति: ऊं भूतपतये नमः।
स्थाणु: ऊं स्थाणवे नमः।
अहिर्बुध्न्य: ऊं अहिर्बुध्न्याय नमः।
दिगम्बर: ऊं दिगंबराय नमः।
अष्टमूर्ति: ऊं अष्टमूर्तये नमः।
अनेकात्मा: ऊं अनेकात्मने नमः।
सात्विक: ऊं सात्विकाय नमः।
शुद्धविग्रह: ऊं शुद्धविग्रहाय नमः।
शाश्वत: ऊं शाश्वताय नमः।
खण्डपरशु: ऊं खण्डपरशवे नमः।
अज: ऊं अजाय नमः।
पाशविमोचन: ऊं पाशविमोचकाय नमः।
मृड: ऊं मृडाय नमः।
देव: ऊं देवाय नमः।
अव्यय: ऊं अव्ययाय नमः।
हरि: ऊं हरये नमः।
भगनेत्रभिद्: ऊं भगनेत्रभिदे नमः।
अव्यक्त: ऊं अव्यक्ताय नमः।
दक्षाध्वरहर: ऊं दक्षाध्वरहराय नमः।
हर: ऊं हराय नमः।
पूषदन्तभित्: ऊं पूषदन्तभिदे नमः।
अव्यग्र: ऊं अव्यग्राय नमः।
सहस्राक्ष: ऊं सहस्राक्षाय नमः।
सहस्रपाद: ऊं सहस्रपदे नमः।
अपवर्गप्रद: ऊं अपवर्गप्रदाय नमः।
अनन्त: ऊं अनन्ताय नमः।
तारक: ऊं तारकाय नमः।
परमेश्वर: ऊं परमेश्वराय नमः।
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