रंगों के त्योहार के लिए होली मशहूर है जिसे फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. संगीत और ढोल के साथ एक दुसरे पर रंग और पानी फेका जाता है. भारत में अन्य त्योहारों की तरह Holi भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रहलाद की कहानी है.
होली कब है 2022 –
होलिका दहन – गुरुवार, 17 मार्च , 2022.
Holi – शुक्रवार, 28 मार्च , 2022.
होली मनाने का इतिहास –
हिरण्यकश्यप प्राचीन समय में एक राजा था. जिसकी भावना राक्षस की तरह थी. वह अपने छोटे भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेना चाहता था . जिसको भगवान विष्णु ने मारा था . इस लिए वह अपने आपको शक्तिशाली बनाने के लिए सालो तक तपश्या की . आखिरकार उसे वरदान मिला. अपने बल के अहंकार पर वह स्वयं को ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर पाबंधी लगा दी थी . और लोगो से खुद को भगवान की तरह पूजा करने के लिए कहने लगा. इसका एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था. प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा करता था. प्रहलाद की ईश्वर भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे कठोर दण्ड दिए , परन्तु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा.
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था की वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया की प्रहलाद को अपनी गोंद में लेकर आग की चिता पर बैठे. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई पर पहलाद को विष्णु भगवान ने बचा लिया. होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है. इस लिए होली के एक दिन पहले बुराई के अंत के रूप में होलिका जलाई जाती है , जिसे होलिका दहन भी कहते है. इसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंग का रूप लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया. इस लिए होली का त्योहार होलिका से जुड़ा है.
रंग, होली का हिस्सा कैसे बना –
यह कहानी भगवान कृष्ण से जुड़ी है जो विष्णु के अवतार है. माना जाता है की भगवान श्री कृष्ण को रंगों से Holi मनाना बहुत पसंद था. और रंगों से होली मनाते थे. इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में मशहूर हुआ.वे वृन्दावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे. वे पुरे गावं में बच्चो जैसी शैतानिया करते थे. आज भी वृंदावन में मस्ती भरी Holi मनाई जाती है.
होली वसंत का त्योहार है इसके आने पर सर्दिया ख़त्म हो जाती है. कुछ हिस्सों में इस त्योहार का सम्बन्ध वसंत की फसल पकने से भी है . किसान अच्छी फसल होने की ख़ुशी में होली मनाते है. Holi को ‘वसंत महोत्सव’ और ‘काम महोत्सव ‘ के रूप में भी जाना जाता है.
क्या होली एक प्राचीन त्योहार है –
यह प्राचीन हिन्दू त्योहारों में से एक है और ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है. Holi का उल्लेख प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है. जैसे की जर्मनी का पुरवामीमांसा-सूत्र और कथक-ग्राम-सूत्र. प्राचीन भारत के मंदिरों पर होली की मुर्तिया बनी है ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर हंपी में है जो विजयनगर की राजधानी है.
होली के रंग –
पहले Holi के रंग को टेसू या पलास के फूलो से बनाया जाता था, जो प्राकृतिक रंग होता था. और उन्हें गुलाल कहते थे. वे रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योकि उनमे किसी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता था. लेकिन समय के साथ रंगों की भी परिभाषा बदलती गई. आज के समय तो रंगों के नाम पर नुकसानदेह रसायन का प्रयोग किया जाता है जिसके चलते कई लोगों ने Holi खेलना छोड़ दिया. हमें इस त्योहार में रासायनिक रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
Holi का त्योहार –
होली केवल एक दिन का त्योहार नहीं है कई राज्यों में इसे तीन दिन तक मनाया जाता है.
पहला दिन – पूर्णिमा के दिन थाली में रंगों को सजाया जाता है परिवार के बड़े सदस्य बाकि सदस्यों को रंग लगाते है.
दूसरा दिन – इस दिन होलिका की प्रतिमाए जलाई जाती है जिसे होलिका दहन भी कहते है. होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है. इस आग्नि के पाच चक्कर लगाकर अग्नि देवता से आशीर्वाद लिया जाता है. होली के इस दिन को ‘पूनो’ के नाम से भी जानते है.
तीसरा दिन – यह होली का अंतिम दिन होता है इस दिन को ‘पर्व’ कहते है. इस दिन एक दुसरे पर रंग और पानी डाला जाता है. कृष्ण और राधा की मुर्तियो पर रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है.
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