पिछले एक दशक में ग्रीनलैंड(Greenland) की बर्फ की चादर से जो 3500 अरब टन बर्फ पिघली है उसने पूरी दुनिया में समुद्र के स्तर को एक सेंटीमीटर बढ़ा दिया है. इससे पूरी दुनिया में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है
ग्रीनलैंड डेनमार्क राजशाही के अधीन एक स्वायत्त घटक देश है, जो आर्कटिक और अटलांटिक महासागर के बीच कनाडा आर्कटिक द्वीपसमूह के पूर्व में स्थित है। हालांकि भौगोलिक रूप से यह उत्तर अमेरिका महाद्वीप का एक हिस्सा है, लेकिन 18 वीं सदी के बाद से यूरोप (खास तौर पर डेनमार्क) से राजनीतिक रूप से जुड़ा हुआ है।
बर्फ की चादर में कितना पानी है –
दुनिया के सबसे बड़े द्वीप के ऊपर स्थित बर्फ की चादर में इतना पानी है की वो दुनिया भर में समुद्र के स्तर को 20 फुट बढ़ा सकता है. पिछले कम से कम 40 सालों से वहां बहुत अधिक बर्फ पिघलने की घटनाएँ बढ़ गई है.शोधकर्ताओं ने कहा कि समुद्र का स्तर बढ़ने से समुद्र और वायुमंडलीय परिसंचरण के स्वरूप में भी बदलाव आ सकता है जो दुनियाभर में मौसम की स्थिति को प्रभावित करता है.
एक साल में इतनी बर्फ पिघली-
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा उपलब्ध कराए गए Data में सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह सामने आई कि 2011 से लेकर अभी तक इस बर्फ की चादर से 3500 अरब टन बर्फ पिघल चुकी है. इससे जितना पानी निकला है वो दुनिया भर में समुद्र के स्तर को बढ़ाने और तटीय समुदायों के लोगों के लिए बाढ़ के खतरे को बढ़ाने के लिए काफी है.
शोध में पाया गया कि इसमें से एक तिहाई बर्फ तो सिर्फ दो सालों (2012 और 2019 ) के गर्मियों के मौसम में पिघली. सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों ने बर्फ के पिघलने में महत्वपूर्ण सालाना परिवर्तन दिखाया.
बर्फ पिघलने से खतरा –
इस अध्ययन के मुख्य लेखक और लीड्स विश्वविद्यालय के पोलर ऑब्जरवेशन और मॉडलिंग केंद्र के शोधकर्ता थॉमस स्लेटर ने बताया, “जैसा कि हमने दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी देखा है, ग्रीनलैंड(Greenland) पर भी चर्म मौसम की घटनाओं का असर पड़ता है.”
उन्होंने यह भी कहा, “जैसे जैसे हमारी जलवायु और गर्म होती जाएगी, हमें ग्रीनलैंड में भी बहुत अधिक बर्फ पिघलने की घटनाओं के लिए भी तैयार रहना होगा.” ग्रीनलैंड(Greenland) की बर्फ के पिघलने का समुद्र के स्तर के बढ़ने में कितना योगदान होगा यह कहना वैज्ञानिकों के लिए हमेशा कठिन रहा है
वैज्ञानिको का कहना-
उन्हें दूसरे कारणों का भी ध्यान रखना होता है. और जैसे जैसे समुद्र गर्म होते जाते हैं, पानी फैलता भी है और इससे भी समुद्र का स्तर बढ़ता है. नए शोध के लेखकों ने कहा है कि सैटेलाइट डाटा ने उन्हें जल्दी से और सही ढंग से अनुमान लगाने की सुविधा दी है कि किसी भी अवधि में ग्रीनलैंड(Greenland) से कितनी बर्फ पिघल सकती है.
इस डाटा ने उन्हें इस जानकारी के आधार पर समुद्र की सतह बढ़ोतरी का अनुमान लगाने की भी सुविधा दी है. शोध के सह-लेखक और ब्रिटेन के लंकास्टर विश्वविद्यालय में एनवायर्नमेंटल डाटा साइंस के सीनियर लेक्चरर एम्बर लीसन ने कहा, “मॉडल अनुमान बताते हैं कि 2100 तक समुद्र के वैश्विक स्तर को बढ़ाने में Greenland की बर्फ की चादर का तीन से 23 सेंटीमीटर तक योगदान होगा.”
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बाढ़ और गर्म हवाओं का बढ़ा प्रकोप –
जेनेवा स्थित विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा पृथ्वी की जलवायु का वार्षिक मूल्यांकन किया गया. इसमें ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उद्देश्य से 2015 के पेरिस समझौते की मुख्य बातों को रेखांकित किया गया. डब्ल्यूएमओ सेक्रेट्री जनरल पेटेरी टालस ने कहा, “पहले सैकड़ों सालों में एक बार बाढ़ या गर्म हवाएं चलने जैसी बात होती थी लेकिन अब यह अकसर हो रहा है.”
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रिकॉर्ड स्तर पर तापमान –
पेटेरी ने कहा, “बहामास और जापान से लेकर मोजाम्बिक तक के देशों ने विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रभाव को झेला है. आर्कटिक और ऑस्ट्रेलिया तक के जंगलों में आग लगी.” पांच साल (2015-2019) और 10 साल (2010-2019) की अवधि का औसत तापमान रिकॉर्ड स्तर पर होना लगभग तय है. साल 2019 दूसरा या तीसरा सबसे गर्म वर्ष हो सकता है.
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समुद्री जीवन पर प्रभाव –
इस समय समुद्र का पानी औद्योगिक युग की शुरुआत के वक्त से 26 प्रतिशत ज्यादा अम्लीय हो चुका है. इसका सीधा असर समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ा है. कई सारे समुद्री जीवों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है.
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कम हो रहे बर्फ-
आर्कटिक समुद्र में सितंबर और अक्टूबर महीने में सबसे कम बर्फ रिकॉर्ड किया गया. इस साल अंटार्कटिका में भी कई बार कम बर्फ देखा गया.
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लोगों को नहीं मिल रहा खाना –
जलवायु परिवर्तन का असर भोजन पर भी पड़ रहा है. वैश्विक स्तर पर भूख से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ी है. 2018 में 82 करोड़ से ज्यादा लोग भूख से प्रभावित हुए.
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प्राकृतिक आपदा का कहर –
जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया के कई हिस्सों में प्राकृतिक आपदाएं आ रही है. लोग बेघर हो रहे हैं. भारत से लेकर उत्तरी रूस तक में बारिश का पैटर्न बदल गया है. कहीं ज्यादा बारिश की वजह से बाढ़ आ रही है तो कहीं बारिश न होने की वजह से सुखाड़.
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वातावरण में बढ़ रही कार्बन की मात्रा –
रिपोर्ट में कहा गया है कि वातावरण में कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. वातावरण में CO2 की सांद्रता 2018 में 407.8 पार्ट्स प्रति मिलियन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. 2019 में यह और बढ़ने की संभावना है. जबकि संयुक्त राष्ट्र ने 400 पार्ट्स प्रति मिलियन को ही ‘अकल्पनीय’ बताते हुए चेतावनी दी थी.
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