पृथ्वी(earth) के अन्दर गहराई में मौजूद गर्भ खौलते तरल पदार्थ से भरा है. 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी के अस्तित्व में आने के बाद से इसका गर्भ लगातार ठंडा पड़ता जा रहा है, वो भी अब तक अनुमानों से कहीं ज्यादा तेजी से. जाने ऐसा क्यों हो रहा है.
पृथ्वी क्यों ठंडी हो रही है –
पृथ्वी की उत्पत्ति के समय पूरी धरती खौलते मैग्मा से लबालब भरी थी. बीतते वक्त के साथ धरती धीमे – धीमे ठंडी होने लगी, लेकिन पृथ्वी (earth)के गर्भ (core) में उष्मा खोने की यह प्रक्रिया आज भी जारी है.
गलत साबित हुई वैज्ञानिक की धारणा-
पृथ्वी के तेजी से ताप खोने की प्रक्रिया के बारे जो वैज्ञानिक धारणा दे रहे थे . उसे अब एक नए शोध ने चुनौती दी है. 15 जनवरी को प्रकाशित नए शोध में धरती के ठंडे होने की रफ्तार को पुराने अनुमानों से कहीं ज्यादा तेज बताया गया है.
स्विट्जरलैंज, जर्मनी, अमेरिका और जापान के रिसर्चरों की इस खोज के मुताबिक पृथ्वी(earth) के core से गर्मी को बाहर निकालने में विकिरण बड़ी भूमिका निभाता है. लेकिन अब तक इस भूमिका को नजरअंदाज किया जाता रहा है.
पृथ्वी पर जो जमीन और समंदर हैं, वो धरती का सबसे बाहरी भाग है. इसके नीचे क्रस्ट कही जाने वाली परत आती है. क्रस्ट के नीचे मेंटल कही जाने वाले दो मोटी होते हैं. एक अपर मेंटल और दूसरा लोअर मेंटल. लोअर मेंटल के कवच के भीतर तरल अवस्था में पृथ्वी का गर्भ है. वैज्ञानिकों का मानना है कि लोअर मेंटल, ब्रिजमैनाइट नाम के खनिज से बना है. ब्रिजमैनाइट शब्द भौतिक विज्ञानी पेर्सी ब्रिजमैन के नाम पर रखा गया है. वैज्ञानिकों को लगता है कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा मात्रा में मौजूद खनिज ब्रिजमैनाइट ही है.
ETH ज्यूरिख में भूविज्ञानी के प्रोफेसर मोतोहिको मुराकामी कहते हैं,
“हमें पता चला है कि ब्रिजमैनाइट की ताप संवाहक क्षमता यानी थर्मल कंडक्टिविटी वैल्यू पहले कम आंकी गई. मुराकामी और उनके साथियों का दावा है कि ब्रिजमैनाइट की ताप संवाहक क्षमता पूर्वानुमान से डेढ़ गुना ज्यादा है.
मुराकामी कहते हैं, “कोर से गर्मी का ट्रांसफर पूर्वानुमान के मुताबिक कही ज्यादा किफायती ढंग से होता है, इसका मतलब यह है कि core अनुमान के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से ठंडा हो रहा है.
प्रयोग का विषय –
विज्ञान और वैज्ञानिक अभी तक भूगर्भ तक नहीं पहुंच सके हैं. यही वजह है कि उसके बारे में सटीक खोज करना आसान नहीं है. वैज्ञानिक अब तक जियोफिजिकल रिसर्च डाटा की मदद से लैब में पृथ्वी के गर्भ का मॉडल तैयार करते हैं. प्रयोग इसी मॉडल पर किए जाते हैं.
मुराकामी और उनकी टीम ने ब्रिजमैनाइट को सिंथेसाइज कर यह प्रयोग किया. सिथेंटिक मिनरल ऐसा खनिज है जिसे प्रकृति से लेने के बजाए वैज्ञानिक लैब में बनाते हैं. इस प्रयोग में जिस सिथेंटिक ब्रिजमैनाइट का प्रयोग किया गया वह इंसानी हाथ में आसानी से फिट हो सकने लायक आकार का है.
ब्रिजमैनाइट के इस नमूने को एक छोटे से चैंबर में रखा गया. फिर उसे हीरे की दीवारों से कंप्रेस किया गया. इस दौरान सैंपल को एक लेजर से गर्म भी किया गया. फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च की जियोफिजिस्ट कारीन सिंगलॉख के मुताबिक लेजर बीम हीरे की दीवारों को पार कर सैंपल को गर्म करती है.
वैज्ञानिको का कहना-
जर्मनी की बायरूथ यूनिवर्सिटी में इनर अर्थ पर रिसर्च करने वाले गैर्ड श्टाइले-नॉयमन कहते हैं, “अब तक का ज्ञान तो यही कहता आया है कि ठोस धरती (earth) पर ताप के परिवहन में विकिरिण कोई खास भूमिका नहीं निभाता है.”
श्टाइनले-नॉयमन शोध का हिस्सा नहीं हैं लेकिन डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, “मुराकामी के प्रयोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि विकिरण, पृथ्वी के कोर से मेंटल तक, ताप के परिवहन को करीब 50 फीसदी तक बढ़ा सकता है, यानि पूरी पृथ्वी के गर्मी खोने की रफ्तार को तेज कर सकता है.”
लेकिन कुछ बातें अब भी साफ नहीं हुई हैं. फ्रांसीसी वैज्ञानिक सिंगलॉख कहती हैं,
“भूगर्भ के ठंडे होने से मेंटल के व्यवहार में क्या फर्क पड़ता है.” पृथ्वी भीतर से तेजी से ठंडी भी हो रही है तो भी मौजूदा जलवायु संकट पर इसका कोई असर नहीं दिखता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्रहों के ठंडा होने की यह प्रक्रिया अरबों साल तक चलती है, जबकि बाहरी वातावरण के तापमान में उछाल दशकों की समयसीमा के भीतर होता है.
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