कभी-कभी मोबाइल और कंप्यूटर पर टाइप करना ऊबाऊ लगता है ना ये कैसा रहेगा कि आप जो सोचें, वो ईमेल या मेसेज की तरह खुद टाइप हो जाए और संदेश सामने वाले तक पहुंच जाए. ईलॉन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक(Neuralink) यह कमाल कर सकती है. ऐसी ही एक कमाल की तकनीक है हाइपरलूप. इसके जरिये दिल्ली-मुंबई का ट्रेन से जो सफर 15 घंटे का है, उसे एक घंटे में पूरा हो जाएगा.
हो सकता है कि ये बातें आपको किसी साइंस-फिक्शन फिल्म का सीन लग रही हों, लेकिन इन्हें साकार करने के लिए दुनिया भर की कंपनियों में होड़ मच गई है. वे चाहती हैं कि हमारे दिमाग को पढ़ लिया जाए, हमारे इरादों को जान लिया जाए. हमारे कीमती समय को बचाया जा सके. सच पूछें तो हमारी जिंदगी का ढर्रा पूरी तरह कैसे बदल दिया जाए, इसी में कारोबार का मंत्र छिपा हुआ है.
बंदर के दिमाग में यह चिप लगाई गई-
मस्क की कंपनी न्यूरालिंक(Neuralink) इंसान के दिमाग में चिप लगाना चाहती है. फिर इंसानी दिमाग जो सोचेगा, उसमें लगी चिप से जुड़े कंप्यूटर-फोन या इंसानी अंगों जैसी अन्य मशीनें वैसा ही काम करेंगी. न्यूरालिंक ने कहा है कि इंसान के दिमाग में इस चिप को लगाने के लिए अमेरिका के मेडिकल रेगुलेटर FDA से जल्द मंजूरी मांगी जाएगी. यह मंजूरी मिलते ही इंसानों पर चिप का ट्रायल शुरू हो जाएगा. मस्क पहले ही बता चुके हैं कि बंदर पर इस चिप का ट्रायल सफल और पूरी तरह से सुरक्षित रहा है. पिछले साल अप्रैल में एक बंदर में यह चिप लगाई गई थी. इस चिप के कारण बंदर बिना हाथ का इस्तेमाल किए सिर्फ अपने दिमाग की सोच के आधार पर विडियो गेम खेल सका.
न्यूरो की समस्याओं से छुटकारा भी मिल सकती है –
एलन मस्क दुनिया के सबसे अमीर इंसान हैं और एक अनुमान के मुताबिक उनके पास 256 अरब डॉलर की दौलत है. पिछले महीने मस्क ने उम्मीद जताई थी कि इस तकनीक की मदद से वे लोग फिर से चल सकेंगे जो बीमारी की वजह से चल नहीं पाते हैं. मस्क ने यह भी ऐलान किया है कि इस साल के अंत तक इंसानी दिमाग में कंप्यूटर चिप लगाने की योजना को शुरू कर दिया जाएगा. मस्क ने कहा कि अगर सबकुछ सही रहता है तो न्यूरालिंक के नाम से शुरू किए गए ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस स्टार्टअप का इंसानी टेस्ट यानी ह्यूमन ट्रायल इस साल के अंत तक शुरू कर दिया जाएगा.
मस्क ने इस स्टार्टअप को 2016 में सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में शुरू किया था. इसके जरिए अल्जाइमर, डिमेंशिया और रीढ़ की हड्डी की चोटों जैसे न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का इलाज करने में मदद करने के लिए मानव मस्तिष्क में एक कंप्यूटर इंटरफ़ेस को प्रत्यारोपित करने का लक्ष्य है. इस परियोजना से मस्क का दीर्घकालीन लक्ष्य मनुष्यों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के बीच के संबंधों का पता लगाना है.
साल के अंत तक ह्यूमन ट्रायल शुरू कर सकते है –
मस्क ने लिखा कि न्यूरालिंक प्रत्यारोपण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काफी तेजी के बहुत कठिन कार्य को कर रहा है. वह अमेरिका की फूड एंड डग्स एडमिनिस्ट्रेटिव (एफडीए) के साथ भी संपर्क बनाए हुए है. अगर चीजें ठीक रहती हैं, तो हम इस साल के शुरू में ह्यूमन ट्रालय करने में सक्षम हो सकते हैं. मस्क ने निजी सोशल ऐप क्लबहाउस पर एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया था कि न्यूरालिंक ने एक बंदर के मस्तिष्क में एक वायरलेस इम्प्लांट किया। जिसके बाद उसने केवल अपने दिमाग की मदद से वीडियोगेम को खेला. इससे पहले न्यूरालिंक (Neuralink) सूअर के दिमाग में भी इन चिप्स को लगाकर ट्रायल कर रही है.
क्या है न्यूरालिंक टेक्नोलॉजी-
ये तकनीक ऐसे न्यूरल इंप्लांट (Neuralink Technology) को विकसित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिससे इंसानी दिमाग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) से सिंक्रोनाइज़ करके कम्प्यूटर्स, कृत्रिम शारीरिक अंग और दूसरी मशीनों को सिर्फ सोचने भर से चलाया जा सके. इसके लिए विकसित की जा रही डिवाइस बेहद छोटी होगी. इसका आकार नाखून के बराबर होगा और ये बैटरी से ऑपरेट होगी. इसमें इस्तेमाल होने वाले तार इंसान के बालों से भी कई गुना पतले होंगे. इसे दिमाग के अंदर इंप्लांट किया जाएगा.
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