साल 2000 में लाल किला पर हुए हमले के दोषी ‘लश्कर-ए-तैयबा’ के आतंकी मोहम्मद आरिफ ऊर्फ अशफाक को फांसी होकर रहेगी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी मोहम्मद आरिफ ऊर्फ अशफाक की फांसी की सजा को बरकरार रखा और उसके द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है.
फांसी की सजा
2005 में आरिफ को निचली अदालत ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी. इसके बाद साल 2007 में हाईकोर्ट ने भी इस सजा की पुष्टि की. 2011 में भी सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने इस सजा को बरकरार रखा था
आतंकी आशफाक ने लाल किला में 22 दिसंबर 2000 की रात सेना की बैरक पर आतंकी हमला किया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उसे दोषी पाया था. सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने जुलाई 2019 को पाकिस्तानी नागरिक आरिफ उर्फ अशफाक की उस याचिका को मंजूर कर लिया था.
2 जवान की मौत
22 दिसंबर 2000 को आरिफ उन तीन लोगों में से एक था, जिसने लाल किला में दाखिल होने के बाद अंधाधुंध फायरिंग की थी. इस हमले में तीन लोग मारे गए थे जिनमें सेना के दो जवान भी थे. जवाबी कार्रवाई में लाल किले पर हमला करने वाले दो आतंकी भी मारे गए थे. आरिफ ही लाल किले पर हमला का मास्टरमाइंड था. पूछताछ में उसने पाकिस्तानी नागरिक होने की बात कबूली थी.
युद्ध छेड़ने के आरोप
आतंकवादी हमले के तीन दिन बाद दिल्ली पुलिस ने आरिफ को गिरफ्तार किया था. निचली अदालत ने आरिफ समेत छह लोगों को दोषी पाया था. सभी पर हत्या, आपराधिक साजिश और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप लगे थे. आरिफ के अलावा अन्य लोगों को कैद की सजा मिली थी.
पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा ने हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसने तब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया था.
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