अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से बचने के लिए पाकिस्तान(Pakistan) के प्रधानमंत्री(Prime Minister) इमरान खान कई बहाने बना रहे हैं. ऐसे में पाकिस्तान में भारत(India) के पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी(atal bihari vajpayee) का एक भाषण ट्रेंड कर रहा है.
Pakistan के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर के मुताबिक, इमरान खान के भारत की तारीफ करने वाले बयानों और अविश्वास प्रस्ताव से बचने की कोशिशों के बीच बड़ा विरोधाभास है. जियो टीवी पर हामिद मीर ने कहा कि, “इमरान खान को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सीखना चाहिए. वाजपेयी साहब को जब पता चला कि उनकी सरकार एक वोट से गिर रही है, वे तभी राष्ट्रपति के पास गए और अपना इस्तीफा दे दिया. इमरान खान साहब भारत की इतनी तारीफ कर रहे हैं, तो वे इन चीजों पर क्यों अमल नहीं कर रहे हैं.”
अटल बिहारी वाजपेयी भाषण
1999 में बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी(atal bihari vajpayee) की सरकार संसद में एक वोट से गिर गई थी. उस दौरान अविश्वास प्रस्ताव में वाजपेयी ने ये भाषण दिया था. पिछले साल तक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना हिटलर से करने वाले इमरान खान अब लगातार भारत की तारीफ कर रहे हैं. वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत से सीखना चाहिए कि किसी महाशक्ति के दबाव में आए बिना कैसे विदेश नीति चलाई जा सकती है.
इमरान खान की पार्टी
मार्च 2021 में भी इमरान खान विश्वास मत खोते-खोते बचे थे. लेकिन हाल के दिनों में इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ को समर्थन देने वाली कुछ पार्टियों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है. पाकिस्तान में सरकार बनाने के लिए संसद के निचले सदन- नेशनल असेंबली में 172 सांसदों का समर्थन होना चाहिए. इमरान खान की पार्टी के पास 155 सीटें हैं. लेकिन बीते एक महीने में खुद इमरान की पार्टी के कुछ नेता भी विपक्ष के साथ जाने का एलान कर चुके हैं.
मार्च के आखिर में यह तकरीबन तय हो गया था कि इमरान खान सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव आएगा और सरकार गिर जाएगी. लेकिन तभी डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने स्पीकर की सहमति से अविश्वास प्रस्ताव को संविधान के अनुच्छेद पांच का उल्लंघन करार देते हुए खारिज कर दिया. इसके बाद राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी ने भी इमरान खान की सिफारिश पर संसद को भंग करने का फैसला किया.
डिप्टी स्पीकर और राष्ट्रपति के फैसलों के खिलाफ विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए, सरकार को अविश्वास मत का सामना करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 5-0 से डिप्टी स्पीकर और राष्ट्रपति के फैसले को संविधान का उल्लंघन करार देते हुए खारिज कर दिया था.
शनिवार को संसद में अविश्वास प्रस्ताव आया लेकिन कुछ देर की कार्रवाई के बाद ही स्पीकर असद कैसर ने फिर से कार्रवाई को कई घंटे के लिए टाल दिया. इमरान खान की पार्टी कहती रही कि पहले वह सरकार गिराने के पीछे छुपी विदेशी साजिश के बारे में विस्तार से बताएगी, फिर वोटिंग होगी. विपक्ष ने इसे बहानेबाजी बताते हुए वोटिंग की मांग की.
Atal Bihari Vajpayee के बारे में कुछ जानकारी :
अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसंबर 1924 – 16 अगस्त 2018) भारत के तीन बार के प्रधानमंत्री थे. वे पहले 16 मई से 1 जून 1996 तक, तथा फिर 1998 मे और फिर19 मार्च 1999 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. वे हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे. वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे, और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया.
राजनीति में कदम
धारा 370 का विरोध करने के लिए 1953 में भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर गए. वहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और हिरासत में उनकी मौत हो गई. मुखर्जी की मौत से तत्कालीन पत्रकार अटल बिहारी वाजपेयी बेहद व्याकुल हुए. इसके बाद वाजपेयी ने राजनीति में उतरने का फैसला किया.
नेहरू की भविष्यवाणी
1957 में चुनाव जीतकर लोक सभा में आने के बाद Atal bihari vajpayee का सामना पहली बार प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से हुआ. नेहरू सरकारी खर्चे पर बन रहे एक होटल की तरफदारी कर रहे थे. इसके जबाव में वाजपेयी ने कहा, “देश को होटल नहीं, हॉस्पिटल चाहिए.” वाजपेयी का जबाव सुनने के बाद नेहरू ने कहा कि यह नौजवान प्रधानमंत्री जरूर बनेगा.
आखिरी नेहरूवादी प्रधानमंत्री
राजनीतिक रूप से तर्क वितर्क करने के बावजूद Atal bihari vajpayee, जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के कायल रहे. उनके भीतर नेहरूवादी समाजवाद की छाप हमेशा मौजूद रही. नेहरू के निधन पर वाजपेयी ने कहा, “यह एक परिवार, समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है. भारत माता शोक में है, क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया. मानवता शोक में है क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया.”
हम रहें या ना रहें
1996 में विश्वासमत पर हो रही बहस के दौरान 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने Atal bihari vajpayee ने कहा, मैं अभी प्रधानमंत्री हूं. कुछ देर में नहीं रहूंगा. लेकिन इसे मेरे में मन को कोई पीड़ा नहीं होगी. कोई शोक नहीं होगा. “सत्ता का खेल तो चलता रहेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी. पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी. मगर ये देश रहना चाहिए. इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए.”
पार्टी हित से ऊपर देश
वाजपेयी शायद आखिरी नेता थे जो देशहित के मामलों में पार्टी की बंदिशें तोड़ने का साहस जुटा पाए. 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने विपक्ष के नेता होने के बावजूद वाजपेयी को जेनेवा में मानवाधिकार सम्मेलन में देश का पक्ष रखने के लिए भेजा. वाजपेयी जेनेवा पहुंचे. कांग्रेस सरकार द्वारा विपक्षी पार्टी के नेता को देश का प्रतिनिधित्व करने भेजने का यह फैसला पूरी दुनिया को हैरान कर गया.
शालीन नेता
वाजपेयी की गिनती हमेशा शालीन नेताओं में होती रही. तमाम किस्म राजनीतिक आरोप प्रत्यारोपों के बीच उन्होंने कभी किसी पर निजी हमला नहीं किया. घोर आलोचना करने वाले नेताओं से भी वाजपेयी की जबरदस्त दोस्ती रही. इससे जुड़ी उनकी एक कविता भी है, “मेरे प्रभु. मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना, गैरों को गले न लगा सकूं.”
विलक्षण वाणी
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशरर्फ ने आतंकवाद के मुद्दे बोल रहे थे. मुशरर्फ ने कहा, भारत आतंकवाद का आरोप लगाता है लेकिन “ताली एक हाथ से नहीं बजती.” इसके जवाब में वाजपेयी ने कहा, “ताली एक हाथ से नहीं बजती, लेकिन चुटकी बजती है. बजाते रहिए.” लेकिन मतभेदों के बावजूद मुशरर्फ बाद में जब भी दिल्ली आए, वह वाजपेयी से मिलने जरूर पहुंचे.
अपनों में पराए, परायों में अपने
अध्योध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने से Atal bihari vajpayee बेहद खिन्न हुए. उनका मानना था कि इस मामले को आपसी बातचीत और अदालत के जरिये सुलझाया जाना चाहिए. लेकिन पार्टी राम मंदिर आंदोलन में कूद चुकी थी. इस दौर में वाजपेयी अपनी ही पार्टी के भीतर अकेले पड़ गए थे.
एकांतवास का दर्द
वाजपेयी पर गहन रिसर्च कर किताब लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी के मुताबिक, ऐसे कई मौके थे जब आरएसएस के इशारों पर वाजपेयी को पार्टी ने किनारे कर दिया. लेकिन जब जब चुनाव आए तब बीजेपी के पास वाजपेयी जैसा कोई और दूसरा नेता नहीं था. तमाम मतभेदों को झेलने वाले वाजपेयी ने इस भावना को “आओ मन की गांठें खोलें” नाम की कविता में तब्दील किया.
भावुक शख्सियत
राजनीति के साथ ही वाजपेयी के जीवन में कला और दर्शन के लिए बड़ी जगह रही. वाजपेयी के मुताबिक कविता, शांति मांगती है और राजनीति शांति नहीं देती. जीवन, मित्रता, संघर्ष और मृत्यु को लेकर भी उन्होंने कविताएं लिखी. उनकी एक कविता है, “जन्म-मरण अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है, कौन जानता किधर सवेरा.”
Credit By : www.dw.com
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